दो एकम दो, दो दूनी चार' ये आवाज़ सारनाथ के मवईयां गांव में सुबह के समय रोज़ सुनाई देती है। बच्चे हाथ में टैबलेट लिए उस पर सहजता से उंगलियां फिराते हुए गणित के पहाड़े और अंग्रेज़ी की ए बी सी डी पढ़ रहे हैं। पेश है वाराणसी के सारनाथ स्थित मवईयां गांव से iamin की ख़ास रिपोर्ट।
भारत के ग़रीब बच्चों में शिक्षा की अलख जगाने के लिए कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के दलाईलामा सेंटर फॉर एथनिक वैल्यूज एंड ट्रांसफॉर्मेशन ने एक अनूठी पहल शुरू की है। वाराणसी में शुरू किए गए पायलट प्रोजेक्ट के तहत यहां ग़रीब बस्ती के बच्चों को टैबलेट्स के ज़रिए पढ़ाया जा रहा है। ख़ास बात ये है कि इस प्रोजेक्ट में 4 से 8 वर्ष की उम्र के बच्चे टैबलेट से खुद ही पढ़ते हैं और खेलते हैं वो भी बिना किसी की मदद के।
ये वो अनोखी पाठशाला है जो कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के एमआईटी की तरफ से वाराणसी के सारनाथ स्थित मवाइयां बस्ती में चलाई जा रही है। एमआईटी के दलाईलामा सेंटर फॉर एथनिक वैल्यूज एंड ट्रांसफॉर्मेशन के एक रिसर्च प्रोजेक्ट के तहत यहां इन ग़रीब छोटे बच्चों को टैबलेट के ज़रिए पढ़ाया जा रहा है। बच्चे टैबलेट से पढ़ते भी हैं और खेलते भी हैं। शहर की सामाजिक संस्था ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन की देखरेख में चल रही इस पाठशाला में ये टैबलेट ही उनका टीचर है। स्थानीय टीचर का काम सिर्फ निगरानी रखना भर है।
सारे टैबलेट्स हैं वाई-फाई की सुविधा से लैस
काशी में टैबलेट से शिक्षा के पायलट प्रोजेक्ट को परवाज़ दे रही संस्था ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. रजनीकांत सहाय ने बताया, "इस प्रोजेक्ट में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के एमआईटी और सर दरोजी टाटा ट्रस्ट सहयोग कर रही हैं जिसने ये टैबलेट उपलब्ध कराए हैं। दलित बच्चों के हाथ में टैबलेट देना एक अनोखा प्रयास है। यहां 25 टैबलेट्स के ज़रिए कुल 50 बच्चों को 2 बार में पढ़ाया जाता है। वाई-फाई की सुविधा से लैस इन टैबलेट्स पर होने वाले सारे कामों पर एमआईटी द्वारा नज़र रखी जाती है कि बच्चे क्या कर रहे हैं। बच्चे इन टैबलेट्स से पढ़ते भी हैं और खेलते भी हैं। पढ़ाई और खेल से जुड़ी हर सुविधा टैबलेट्स में मौजूद है साथ ही बच्चों की प्रोग्रेस को जांचने के लिए इसमें टेस्ट पेपर भी है। 3 साल के लिए शुरू हुआ यह प्रोजेक्ट अभी वाराणसी के सारनाथ क्षेत्र के मवईयां में चल रहा है। आगे इसे देश के दूसरे शहरों में बढ़ने की भी संभावना है।"
'बड़े वाले मोबाइल से पढ़ना अच्छा लगता है'
दलित बस्ती की रानी जिसकी उम्र महज़ 7 साल है, को टैबलेट और मोबाइल के बारे में कुछ नहीं पता है। रानी बताती है कि वह कभी स्कूल नहीं गई, हां स्कूल के बाहर खड़े होकर दो एकम दो, दो दूनी चार ज़रूर सुना था। अब यहां इस बड़े वाले मोबाइल से पढ़ रही हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वहीं 5 साल का राजू भी टैबलेट से पढ़कर बहुत खुश है। राजू ने बताया कि मुझे इस पर उंगलियां चलाना बहुत पसंद है। उंगली फिरते ही सब कुछ बदल जाता है और इसमें कई सारे खेल भी हैं।
बच्चों का बस ध्यान रखना होता है
इस टैबलेट पाठशाला का ध्यान रखने वाली शीला बताती हैं, "यह एक अनोखी पाठशाला है। मैं अकेले ही यहां के बच्चों को संभालती हूं। इन पर बस ध्यान देना होता है कि किसी रॉन्ग फंक्शन में टैबलेट न चला जाए। बच्चे भी इस टैबलेट पाठशाला में मस्ती से पढ़ते हैं और ज्ञान की बातें सीखते हैं।"
इस ग्लोबल लिट्रेसी प्रोजेक्ट का मकसद इन ग़रीब बच्चों में आधुनिक शिक्षा के प्रति रूचि जगाना है साथ ही आधुनिक गैजेट्स से इन्हें रूबरू करना है जिससे ये आगे चलकर दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकें।